आधुनिक युग में एक के बाद एक नए आविष्कार होने से लोग पुरानी तकनीकों को भूलते जा रहे हैं। जिससे परंपरागत तकनीक विलुप्त हो रही हैं। इसका एक जीवंत उदाहरण घराट (पनचक्की) भी है, जो धीरे-धीरे विलुप्त होने की कगार पर हैं। बीते समय में लोग घराट पर ही गेहूं, जौ, बाजरा, मक्का आदि पीसते थे। लेकिन धीरे-धीरे घराट की जगह अब डीजल और फिर बिजली से चलने वाली चक्की ने ले ली है।
यमकेश्वर ब्लॉक के विंध्यवासिनी निवासी सोहनलाल जुगलान विलुप्त हो रही धरोहर घराट को जीवंत बनाए हैं। सोहन लाल ने बताया कि वर्ष 1905 से उनके पूर्वज विंध्यवासिनी के तलहटी पर घराट चलाते थे। उसके बाद उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी इस घराट काे चला रही है। पहले घराट में ताल, बांदनी, आमकाटल, कंटरा आदि करीब एक दर्जन से अधिक गांवों के ग्रामीण में गेहूं, जौ, बाजरा, मक्का आदि पिसवाने के लिए आते थे।
अब ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन होने से कृषि पैदावार कम हो गई है। जिसके कारण घराट पर ग्रामीणों की आवाजाही कम हो गई है। बिजली से चलने वाली चक्की का चलन बढ़ने से अब लोग समय बचाने के फेर में वहीं अपना अनाज पिसवाते हैं। सोहनलाल जुगलान कहते हैं, जब तक वह हैं तब तक उनका घराट चलता रहेगा। अगर बेटे ने चलाया तो घराट का संचालन एक पीढ़ी और आगे बढ़ जाएगा।