रजिस्ट्री फर्जीवाड़ा: कॉफी पाउडर के घोल में भिगोकर कागजों को किया पुराना, जालसाजों के करानामे ने किया हैरान

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रजिस्ट्री फर्जीवाड़े में अजय मोहन पालीवाल नाम के फोरेंसिक एक्सपर्ट को पकड़ा गया था। उसे हर प्रकार का ज्ञान था कि कहां कौन सी तकनीक काम में लाई जा सकती है। इसके लिए उसने पुराने स्टांप का इस्तेमाल किया। उन्हें नमक के तेजाब से कोरा बना दिया।

जालसाजों ने नए दस्तावेज को भी पुराने जैसा बनाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया। इसके लिए उन्होंने नए कागजों को कॉफी पाउडर के घोल में भिगोया और उन्हें पुराने जैसा बना दिया। इस तकनीक से कागज ऐसे हो गए कि उन्हें किसी भी स्तर पर नहीं पकड़ा गया। अंत में जब आरोपी पकड़ में आए तो उन्होंने खुद इसका खुलासा एसआईटी के सामने किया।

दरअसल, पिछले दिनों रजिस्ट्री फर्जीवाड़े में अजय मोहन पालीवाल नाम के फोरेंसिक एक्सपर्ट को पकड़ा गया था। उसे हर प्रकार का ज्ञान था कि कहां कौन सी तकनीक काम में लाई जा सकती है। इसके लिए उसने पुराने स्टांप का इस्तेमाल किया। उन्हें नमक के तेजाब से कोरा बना दिया।

इसके बाद गीले स्कैच पैन से उन पर दोबारा लिखकर बैनामे तैयार कर दिए। लेकिन, अब बात सामने यह आई कि स्टांप तो इस तरह से बन गए। उन पर दिन तारीख भी पहले जैसी ही थी। लेकिन, इसके साथ में जो ए-4 साइज कोरे पेपर लगते थे उन्हें किस तरह से पुराना बनाया गया। इसका खुलासा आरोपियों ने खुद पुलिस के सामने किया।

एक आरोपी ने बताया कि नए कागजों को पुराना बनाने की तकनीक उन्हें एक अन्य व्यक्ति ने बताई थी। अगर किसी नए कागज को कॉफी के घोल में भिगोया जाए और उसे कुछ घंटों तक सुखाया जाए तो यह पुराने जैसा होता जाता है। पुराने कागज से नमी एकदम सूख जाती है तो वह टूटने भी लगता है। इसी तरह कॉफी पाउडर में भिगोकर सुखाने पर कागज में पुराने कागज जैसे गुण आ जाते हैं। यह भी उसी तरह टूटने भी लगता है। इस तरह उन्होंने हजारों कागजों को पुराना बनाया। उनका यह खेल किसी भी स्तर पर पकड़ा नहीं गया।

रजिस्ट्री फर्जीवाड़े में पुलिस अब जांच कर रही है तो नए नए खुलासे हो रहे हैं। लेकिन, इससे पहले किसी भी अधिकारी या कर्मचारी ने उनके इस फर्जीवाड़े को नहीं समझा। बात रक्षा मंत्रालय और टर्नर रोड स्थित जमीन के फर्जी दस्तावेज की करें तो हुमायूं ने इनके फर्जी बैनामे तो सहारनपुर में तैयार किए थे। जबकि, वसीयत उसने देहरादून में ही कराई थी। पिता की मौत हो गई तो वारिसान के माध्यम से यह जमीन हुमायूं के नाम पर आ गई। इस पर वह केस भी लड़ने लगा। लेकिन, किसी भी अधिकारी या कर्मचारी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि इतनी बड़ी जमीन का वारिसान कैसे बनाया गया।

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